Month: जनवरी 2018

यह स्वभाव में है

रेजिना के दिन का आरम्भ, एक दुखद खबर से हुआ था, फिर सहकर्मियों के साथ मीटिंग्स थीं जिनमें उसके सभी आईडिया अस्वीकृत हो गए। लौटते समय उसने एक केयर सेंटर में किसी बुजुर्ग मित्र के पास फूल ले जाकर उसे सरप्राइज देने का निर्णय लिया। मरिया के यह बताने पर कि परमेश्वर उसके लिए कितने भले हैं, उसकी आत्मा तरोताज़ा हो गई। उसने कहा, "मेरा अपना बिस्तर और अपनी कुर्सी हैं, तीन समय का भोजन और नर्सों की मदद है। और कभी किसी अपने को परमेश्वर मेरे पास भेज देते हैं क्योकि वे जानते हैं कि मैं उन से प्यार करती हूँ और वह स्वयं मुझ से प्यार करते हैं।"

स्वभाव। दृष्टिकोण। कहावत है, "10 प्रतिशत जीवन उससे बना है जो हमारे साथ घटता है, और 90 प्रतिशत उसपर हमारी प्रतिक्रिया से।" याकूब ने उनके नाम पत्र लिख था जो सताव के कारण तित्तर बित्तर हो गए थे, और उनसे परख के समय अपने दृष्टिकोण पर गौर करने को कहा। उसने उन्हें इन शब्दों से चुनौती दी: “इसको पूरे आनन्द की बात समझो...”। (याकूब 1:2)

आनंद से भरे होने का यह दृष्टिकोण तब उत्पन्न होता जब हम यह देखना सीख लेते हैं कि परमेश्वर संघर्षों का उपयोग हमारे विश्वास में परिपक्वता लाने के लिए करते हैं।

प्रतिज्ञाएं, प्रतिज्ञाएं

मेरी बेटी और मैं "पिन्चर्स" खेल खेलते हैं। ऊपर चड़ते हुए मैं उसका पीछा करता हूँ और उसकी चुटकी काटता हूँ। मैं तभी पिंच कर सकता हूँ जब वह सीढ़ियों पर हो। ऊपर पहुंचते ही वह सुरक्षित होगी। जब वह खेलने के मूड में न हो और मैं उसे सीढ़ियों में पाऊँ तो कहती है, "पिंचर्स नहीं!" मैं कहता हूँ, "पिंचर्स नहीं! प्रॉमिस।"

ऐसी प्रतिज्ञा साधारण बात है। लेकिन जब मैंने जो कहा वह करता हूँ, तो उसे मेरे चरित्र की पहचान होती है। कथनी अनुसार करनी के मेरे गुण का उसे अनुभव और भरोसा होता है कि मेरा कहना काफ़ी है, कि वह मुझ पर भरोसा कर सकती है। यह एक छोटी बात है। लेकिन प्रतिज्ञाएं-या मुझे कहना चाहिए कि, उन्हें निभाना-संबंधों को जोड़ने की गोंद होती हैं। ये प्रेम और विश्वास की नींव बनाती हैं।

पतरस  ने लिखा कि परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं हमें "ईश्वरीय स्वभाव में सहभागी" बनाती हैं। (2 पतरस 1:4) परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास कर, हमारे प्रति उनके ह्रदय को हम समझ पाते हैं। उनके वचन पर हमारा निर्भर होना उन्हें अपनी विश्वासयोगिता सिद्ध करने का अवसर देता है। मैं धन्यवादी हूँ कि बाइबिल उनकी प्रतिज्ञाओं से भरी है, जो याद दिलाती हैं कि "उसकी दया अमर है..."(विलापगीत 3:22-23)।

मेरी मदद!

प्रसिद्ध भजन मण्डली, ब्रुकलीन टैबरनैकल ने कई दशकों से आत्म-विभोर करने वाले  भजनों से सैंकड़ों लोगों को आशीषित किया है। उनकी रिकॉर्डिंग में भजन 121 पर आधारित "मेरी मदद" एक उदाहरण है।

भजन 121 का आरम्भ उस परमेश्वर के प्रति विश्वास के व्यक्तिगत अंगीकार से होता है जो सब बातों का रचयिता, और मदद का स्रोत है (1-2)। स्थिरता (3), दिन-रात की परवाह (3-4), और उपस्थिति और रक्षा (5-6), और हर बुराई से बचाव (7-8)।

शात्रों से प्रेरित होकर परमेश्वर के लोगों ने सदियों से अपने गीतों में परमेश्वर को  "सहायता" का स्रोत बताया है। महान सुधारक मार्टिन लूथर ने लिखा, "परमेश्वर हमारा एक मजबूत गढ़ है, एक दीवार जो कभी नहीं ढहती; हमारे दोषपूर्ण और नश्वर होने के वावजूद वह हमारी सदा मिलने वाली सहायता हैं"।

क्या आप अकेला, छोड़ा, निष्कासित, भ्रमित महसूस करते हैं? भजन 121 के शब्दों पर मनन करें। अपनी आत्मा में विश्वास और साहस भर जाने दें। आप अकेले नहीं हैं, इसलिए जीवन आप ही जीने का प्रयत्न ना करें। वरन् परमेश्वर की सांसारिक और अनन्त काल की परवाह में आनंदित हों जिसे प्रभु यीशु मसीह के जीवन, मृत्यु, पुनः जी उठने, और स्वर्गारोहण में प्रदर्शित किया गया है। और आगे जो भी हो, उसे उनकी सहायता से ग्रहण करें।

आत्मा के सामर्थ के द्वारा

दशरथ मांझी की कहानी हमें प्रेरणा देती है। उनकी पत्नी की मृत्यु इसलिए हो गई, क्योंकि वह उसे तत्काल चिकित्सा के लिए अस्पताल न लेजा सके, मांझी ने वह किया जो असंभव था। 22 वर्ष लगा कर उन्होंने पहाड़ में बड़ी जगह बनाई ताकि गांववासी स्थानीय अस्पताल पहुंचकर आवश्यक चिकित्सा और देखभाल पा सकें। भारत सरकार ने उनकी उपलब्धि के लिए उन्हें सम्मानित किया।

देश निकाले से लौटे जरूब्बाबेल को मंदिर का पुनर्निर्माण असंभव लगा होगा। लोग निराश थे, दुश्मनों के विरोध का सामना कर रहे थे, और उनके पास संसाधन या एक बड़ी सेना न थी। परमेश्वर ने जरूब्बाबेल के पास जकर्याह को भेजकर उसे याद दिलाया कि यह कार्य सेना, मानव बल या मानव निर्मित संसाधनों की बजाय उससे होगा जो इनसे अधिक बलवान है। यह आत्मा के बल से होगा (जकर्याह 4:6)। जरूब्बाबेल ने विश्वास किया कि मंदिर के पुनर्निर्माण और समुदाय को पुनःस्थापित करने के रास्ते में किसी भी कठिनाई के पहाड़ को परमेश्वर मैदान कर देंगे।

हमारे सामने “पहाड़” हो तो हम क्या करते हैं? इसके दो विकल्प होते हैं: अपने पर भरोसा रखें या आत्मा के बल पर। जब हम उनके बल पर भरोसा करेंगे, तो वह या तो पहाड़ को मैदान बना देंगें या हमें उस पर चढने का बल और सहनशीलता देंगे।

विलम्ब से निपटना

ग्लोबल कम्प्यूटर सिस्टम आउटेज के कारण विमान उड़ाने रद्द हो जाने से, लाखों यात्री हवाई अड्डों में फंस जाते हैं। बर्फ़ीले तूफान के दौरान अनेकों वाहन दुर्घटनाओं के कारण प्रमुख राजमार्ग बंद हो जाते हैं। जिसने “तत्काल” कुछ करने का वादा किया हो, वह ऐसा नहीं कर पाता। विलम्ब अक्सर क्रोध और हताशा पैदा करता है, परन्तु यीशु के अनुयायी होने के नाते हमें मदद के लिए उनकी ओर देखने का सौभाग्य मिला है।

बाइबिल में संयम के महान उदाहरणों में से एक यूसुफ का है, जिसे उसके ईर्ष्यावान भाइयों ने दासों का व्यापार करने वालों को बेच दिया था, जिसे उसके स्वामी की पत्नी के झूठे आरोप के कारण मिस्र में कारावास मिला। "जब यूसुफ बंदीगृह में था, यहोवा यूसुफ के संग-संग रहा था"। (उत्पत्ति 39:20-21) वर्षों बाद जब यूसुफ ने फिरौन के स्वप्न की व्याख्या की, तो उसे मिस्र में दूसरा सबसे बड़ा स्थान मिला। (अध्याय 41)

उनके संयम का सबसे उल्लेखनीय फल तब आया जब उसके भाई अकाल के दौरान अनाज खरीदने आए तो उसने उनसे कहा, "मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूं, जिसको तुम ने मिस्र में बेच दिया था..."(45:4-5,8)।

यूसुफ के समान छोटे या लम्बे, हर विलम्ब में,  जब हम प्रभु पर विश्वास रखेंगे तो हमें भी संयम, सही दृष्टिकोण और शांति मिलेंगे।

आभार की भावना विकसित करना

क्या आप आभार की भावना विकसित करना चाहते हैं? सतराहवीं शताब्दी के ब्रिटिश कवि जॉर्ज हरबर्ट, अपनी कविता “ग्रेटफुल्नेस” के माध्यम से पाठकों को उस लक्ष्य के प्रति प्रोत्साहित करते हैं: "आपने मुझे बहुत कुछ दिया है, एक चीज़ और दे दो: एक आभारी हृदय।" हर्बर्ट समझ गए थे कि आभारी होने के लिए केवल एक ही चीज़ उन्हें चाहिए थी, उन आशीषों के बारे में जागरूकता जो परमेश्वर ने उन्हें पहले ही दी थीं।

रोमियों 11:36  में बाइबिल मसीह यीशु को सभी आशीषों का स्रोत बताती है, "उसी की ओर से और उसी के द्वारा और उसी के लिए सब कुछ है"। इसमें हर रोज़ के जीवन के बहुमूल्य और सांसारिक, वरदान शामिल हैं। जीवन में जो हम प्राप्त करते हैं, वह हमारे स्वर्गीय पिता की ओर से आता है, (याकूब 1:17), और वह अपने प्रेम के कारण उन वरदानों को हमें स्वेच्छा से देते हैं।

उन सभी सुखों के स्रोत का आभार मानना मैं सीख रही हूं जिनका हर दिन अनुभव करती हूँ, और जिन्हें मैं अक्सर महत्वहीन समझती हूँ। जैसे एक ताज़ा सुबह में सैर, दोस्तों के साथ शाम, एक भरपूर रसोई, खिड़की के बाहर सुन्दर दुनिया और ताज़ा कॉफी की सुगन्ध।

इन आशीषों के प्रति जागरूकता आभारी हृदय विकसित करने में हमारी मदद करेगी।

प्रार्थना का सामर्थ

जब मैं अपने किसी करीबी मित्र के हित को लेकर चिंतित थी, तब पुराने नियम में शमूएल की कहानी से मुझे प्रोत्साहन मिला। मैंने पढ़ा कि जब परमेश्वर के लोग परेशान थे तो शमूएल ने कैसे उनके लिए यहोवा की दोहाई दी थी, मैंने भी अपने मित्र के लिए प्रार्थना करने का संकल्प किया।

इस्राएली लोग पलिश्तियों का सामना कर रहे थे, जो पहले उन्हें हरा चुके थे जब लोगों ने उन पर भरोसा नहीं किया था (1 शमूएल 4)। अपने पापों का पश्चाताप कर लेने के बाद, उन्होंने सुना कि पलिश्ती हमला करने वाले थे। अब उन्होंने शमूएल से उन लोगों के लिए प्रार्थना करते रहने को कहा (7:8), उत्तर में परमेश्वर ने उनके दुश्मन को भ्रम में डाल दिया(10)। यद्यपि पलिश्ती इस्राएलियों की तुलना में अधिक शक्तिशाली थे, परन्तु यहोवा उन सबमें सबसे बलवान थे।

अपने प्यारों को चुनौतियों का सामना करते देख हमें पीड़ा होती है, और डरते हैं कि स्थिति नहीं बदलेगी, या प्रभु कार्य नहीं करेंगे। लेकिन हमें प्रार्थना के सामर्थ को कम नहीं समझना चाहिए, क्योंकि हमारा प्रेमी परमेश्वर हमारी प्रार्थना सुनता है। हमारे पिता के रूप में उनकी इच्छा है कि हम उनका प्रेम अपनाएं और उनकी सच्चाई पर भरोसा करें।

क्या किसी के लिए आप आज प्रार्थना कर सकते हैं?

एकता के लिए प्रयत्नशील रहना

1950 के दशक में, गोरे-काले के भेदभाव के कारण अलगाव की स्थिति थी। स्कूलों, रेस्तरां, सार्वजनिक वाहनों और पड़ोसियों में, रंग के आधार पर लोग विभाजित किए जाते थे। 1968 में मैंने अमेरिकी सेना की बेसिक ट्रेनिंग में प्रवेश पाया। हमारी कंपनी में भिन्न सांस्कृतिक समूहों के कई युवा पुरुष थे। हमने जल्द ही सीख लिया कि एक-दूसरे को समझने और स्वीकार करने के साथ हमें मिलकर काम करके अपने मिशन को पूरा करने की आवश्यकता थी।

जब पौलुस ने कोलोस्से की कलिसिया को पत्र लिखा, तो वे उन की विविधता से परिचित थे। उन्होंने उन्हें याद दिलाया, "उस में न तो यूनानी रहा, न यहूदी...(कुलुस्सियों 3:11)। ऐसे समूह में जहां ऐसे मतभेद लोगों को आसानी से विभाजित कर सकते थे, पौलुस ने उनसे करूणा, भलाई, दीनता, नम्रता, और सहनशीलता धारण करने का आग्रह किया और इन सभी गुणों के ऊपर, “प्रेम को...बान्ध लेने को कहा" (12,14)।

इन सिद्धांतों के अभ्यास में प्रयत्न और समय दोनों लग सकता है, लेकिन यह कार्य करने को यीशु ने हमें बुलाया है। उनके प्रति हमारा प्रेम विश्वासियों की समानता है। हम मसीह की देह के सदस्यों के रूप में विवेक, शांति और एकता के लिए प्रयत्नशील बने रहें।

विविधता के बीच, हम मसीह में और भी अधिक एकता का प्रयत्न करते रहें।